सीपत

उफनते नाले में बहे 3 साल के मासूम तेजस की मिली लाश…आखिरकार दुःखद मोड़ में खत्म हुई तलाश

बिलासपुर – हरेली पर्व के दिन जहां पूरा प्रदेश हरियाली और खुशियों में डूबा था, वहीं बिलासपुर जिले के सीपत थाना क्षेत्र स्थित खम्हरिया गांव के साहू परिवार पर ग़मों का पहाड़ टूट पड़ा। ग्राम उच्चभट्ठी के प्रसिद्ध शिव शक्ति पीठ मंदिर से दर्शन कर लौटते वक्त मोहनलाल साहू उर्फ भोला की वेगनआर कार क्रमांक CG11 MA 0663) परिवार सहित तुंगन नाले के पुल पर तेज बहाव में बह गई। कार में कुल 9 लोग सवार थे, जिनमें मोहनलाल, उनकी पत्नी, भाई और 5 मासूम बच्चे शामिल थे। पुल पर पानी का बहाव इतना तेज था कि गाड़ी 150 फीट तक बहती चली गई। किसी तरह मोहनलाल सहित अन्य सदस्य किसी चमत्कार की तरह तैरकर बाहर निकले और 4 बच्चों को बचा लिया। लेकिन उनका तीन वर्षीय इकलौता बेटा तेजस साहू पानी की रौद्र लहरों में बह गया।

यह दृश्य इतना भयावह था कि वहां मौजूद हर किसी की आंखें नम हो गईं। घटना के तत्काल बाद रात में सीपत पुलिस मौके पर पहुंची, लेकिन अंधेरा और पानी का विकराल रूप बचाव कार्य में बाधा बनता रहा। अगले दिन सुबह होते ही SDRF की टीम और स्थानीय ग्रामीणों ने सघन रेस्क्यू ऑपरेशन शुरू किया। आखिरकार लगभग 43 घंटे की लगातार तलाश के बाद, घटनास्थल से 500 मीटर दूर एक बबूल के पेड़ के नीचे झाड़ियों में तेजस का शव फंसा हुआ मिला। मासूम का शव पानी में लंबे समय तक डूबे रहने से बुरी तरह सड़ चुका था। पोस्टमॉर्टम के बाद जब तेजस का शव गांव लाया गया, तो पूरे गांव में मातम छा गया। हर आंख नम थी और दिल में एक ही सवाल क्या यह त्रासदी रोकी जा सकती थी?

प्रशासन की लापरवाही पर भड़के ग्रामीण, आंदोलन की चेतावनी


इस हादसे ने न सिर्फ एक मासूम की जान ली, बल्कि प्रशासनिक लापरवाही की पोल भी खोल दी। स्थानीय ग्रामीणों का आरोप है कि तुंगन नाले पर बना पुल साल 1994-95 में तैयार किया गया था और तब से अब तक उसकी हालत बेहद जर्जर हो चुकी है। न तो पुल पर कोई सुरक्षा रेलिंग है, न ही कोई चेतावनी संकेत लगाए गए हैं। बरसात के मौसम में यह पुल हादसों का न्योता बन जाता है। ग्रामीणों का कहना है कि हर साल यहां इस तरह की दुर्घटनाएं होती हैं, पर प्रशासन आंख मूंदे बैठा है। ग्रामीणों ने जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई और पुल के तत्काल पुनर्निर्माण की मांग करते हुए चेतावनी दी है कि यदि जल्द कोई कदम नहीं उठाया गया, तो वे बड़ा जन आंदोलन करेंगे।

सवालों के घेरे में सिस्टम… अब और कितनी जानें जाएंगी?


तेजस की मौत केवल एक हादसा नहीं, बल्कि एक सिस्टम की असफलता की गवाही है। आखिर क्यों कोई चेतावनी बोर्ड नहीं था? क्यों इस पुल की ऊंचाई और सुरक्षा इंतजामों पर ध्यान नहीं दिया गया? क्या प्रशासन को हर बार किसी मासूम की जान जाने के बाद ही जागना होगा?इस दिल दहला देने वाली घटना ने सभी को झकझोर दिया है। गांव के लोगों का कहना है कि अगर प्रशासन ने समय रहते पुल की मरम्मत कर दी होती, तो शायद आज तेजस जिंदा होता। अब हर किसी की जुबान पर एक ही सवाल है क्या तेजस की मौत से प्रशासन कुछ सीखेगा या फिर अगली त्रासदी तक इंतजार करेगा?

आखिरकार तेजस मिल गया, पर जीवित नहीं…

43 घंटे तक उम्मीद की डोर पकड़े रहे माता-पिता, लेकिन अंत मिला शव के रूप में। यह सिर्फ एक बच्चा नहीं, एक पूरी उम्मीद थी जो बह गई तुंगन नाले की लहरों में…

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