पचपेड़ी

सर्पदंश से 10 वर्षीय बालिका की हुई मौत…उपचार के नाम पर अंधविश्वास पड़ा भारी, फूँक-झाड़ कराते बिता वक़्त,

बिलासपुर – जिले के पचपेड़ी थाना क्षेत्र अंतर्गत ग्राम सोन में बीते गुरुवार की सुबह एक दर्दनाक हादसा सामने आया, जिसमें एक 9 वर्षीय मासूम बालिका की जान चली गई। घटना ने एक ओर जहां ग्रामीण क्षेत्र में अब भी जीवित अंधविश्वास की भयावहता को उजागर किया है, वहीं स्वास्थ्य सेवाओं के प्रति लोगों की उदासीनता पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं। मिली जानकारी के अनुसार ग्राम सोन निवासी शनेस पटेल की पुत्री कुमारी रेशमा पटेल उम्र 10 वर्ष अपने घर के कमरे में सो रही थी। गुरुवार तड़के करीब 4 बजे घर की छत पर बने पटाव से एक जहरीला करैत सांप नीचे गिरा और सोती हुई रेशमा के दाहिने पैर पर काट लिया। जैसे ही बच्ची को सांप ने डंसा, वह चीखने लगी। शोर सुनकर परिजन जागे और घटनास्थल पर पहुंचे। हालांकि इस पूरे मामले में जो सबसे अधिक चिंताजनक पहलू सामने आया वह यह है कि बच्ची को प्राथमिक उपचार या नजदीकी स्वास्थ्य केंद्र ले जाने के बजाय परिजनों ने तांत्रिक उपायों का सहारा लिया। बताया जा रहा है कि रेशमा को एक स्थानीय तांत्रिक के पास ले जाया गया जहां तंत्र-मंत्र और झाड़-फूंक के जरिए जहर उतारने की कोशिश की गई। इस प्रक्रिया में कीमती समय व्यतीत होता गया और करैत सांप का जहर मासूम के शरीर में फैलता चला गया।

जब बच्ची की हालत बिगड़ गई और उसकी मौत हो गई, तब जाकर मामले की सूचना पुलिस को दी गई। सूचना मिलते ही पचपेड़ी पुलिस मौके पर पहुंची और शव का पंचनामा कर उसे पोस्टमार्टम के लिए भेजा गया। पुलिस ने मर्ग कायम कर मामले की जांच शुरू कर दी है। विशेषज्ञों की मानें तो करैत सांप का विष अत्यंत घातक होता है और समय पर सही इलाज मिलने पर ही व्यक्ति की जान बचाई जा सकती है। यदि रेशमा को सांप काटने के तत्काल बाद मस्तूरी स्थित सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पहुंचाया गया होता, तो संभवतः उसकी जान बचाई जा सकती थी। यह घटना न केवल एक मासूम की असमय मृत्यु की पीड़ा को सामने लाती है, बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी व्याप्त अंधविश्वास की जड़ें कितनी गहरी हैं, इसका भी एक उदाहरण है। शासन और स्वास्थ्य विभाग द्वारा समय-समय पर जागरूकता अभियान चलाए जाते हैं, लेकिन इस घटना ने यह स्पष्ट कर दिया है कि इन अभियानों की पहुंच अब भी सीमित है। अब यह आवश्यक हो गया है कि प्रशासन ऐसे मामलों में संवेदनशीलता के साथ साथ कठोर कदम भी उठाए। गांवों में स्वास्थ्य शिक्षा को प्राथमिकता दी जाए और लोगों को यह बताया जाए कि किसी भी आपात स्थिति में वैज्ञानिक और चिकित्सकीय सहायता ही सबसे प्रभावी उपाय है। रेशमा की मौत ने पूरे गांव को शोक में डुबो दिया है। वहीं इस दर्दनाक घटना से सबक लेने की भी जरूरत है कि अंधविश्वास के भरोसे किसी की जान न सौंपी जाए।

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